ऑफिस में समान वेतन का अधिकार क्या है ? Office Me Saman Vetan ka Adhikar

ऑफिस में समान वेतन का अधिकार : अगर किसी एक ही कार्य को एक ही समान समय में स्त्री और पुरुष द्वारा किया जा रहा है तो आपके अनुसार क्या उन दोनों का वेतन अलग अलग होना चाहिए या उन दोनों का वेतन एक समान ही हो

तो इस सवाल का उत्तर होगा कि दोनों को एक समान ही वेतन प्रदान किया जाए क्योंकि दोनों ने उतना ही कार्य किया है परंतु समान वेतन का अधिकार जो कि पहले संवैधानिक प्रावधान के तौर पर नहीं जाना जाता था

इसके लागू होने से पहले ऐसा नहीं था क्योंकि इसके पहले जब किसी भी कार्य को स्त्री तथा पुरुष द्वारा किया जाता तो स्त्री को पुरुष की तुलना में कम वेतन प्रदान किया जाता

हालांकि इस बात का स्त्रियों द्वारा विरोध भी किया जाता परंतु वह विरोध हमेशा ही एक ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता था

हमारे समाज में शुरुआत से ही यह धारणा रही है कि पुरुषों की तुलना में महिलाएं कमजोर होती हैं चाहे वह शारीरिक रूप से हो या कार्य करने की क्षमता के आधार पर इसी कारण से बहुत समय पहले तक पुरुषों तथा महिलाओं के बीच एक वेतन का विभाजन भी उनके लिंग के आधार पर किया जाता था और स्त्रियों की तुलना में पुरुषों को ज्यादा वेतन प्रदान कराया जाता था

आज भारतीय संविधान का अनुच्छेद 141 भी समान वेतन की बात करता है और यह कहता है कि चाय स्त्री हो या पुरुष सभी को एक समान वेतन मिलना चाहिए क्योंकि सभी लोग एक समान ही कार्य करते हैं 

अत यह कहा जा सकता है कि समान वेतन का सिद्धांत एक संवैधानिक रूप से मान्यता प्राप्त सिद्धांत हैं और जो कि स्त्री और पुरुष को एक समान वेतन देने की बात करता है

आज के इस लेख में हम इसी समान वेतन के अधिकार से संबंधित विभिन्न प्रकार की चर्चाओं को आपके साथ साझा करने वाले हैं

और देखने वाले हैं कि आखिर समान वेतन क्या है, समान वेतन का लागू होना क्यों जरूरी था और साथ ही समान वेतन का अधिकार आज स्त्रियों के लिए किस प्रकार से एक वरदान सिद्ध हो रहा है

इसके साथ ही आज के इस लेख का हमारा मुख्य विषय रहेगा ऑफिस में समान वेतन का अधिकार क्या है ?

 

office me saman vetan ka adhikar
Office me Saman vetan ka Adhikar

 

ऑफिस में समान वेतन का अधिकार – Office me Saman vetan ka Adhikar

अगर किसी ऑफिस में 2 कर्मचारियों द्वारा एक समान कार्य किया जा रहा है, जिसमें से एक कर्मचारी स्त्री तो वहीं दूसरी कर्मचारी पुरुष हैं तो क्या यह व्यवहारिक बात नहीं है कि दोनों को एक समान वेतन ही मिलना चाहिए क्योंकि दोनों ही एक ही प्रकार का कार्य कर रहे हैं

पर 1976 से पहले शायद ऐसा नहीं था क्योंकि उस समय तक समान वेतन का अधिकार अधिनियम लागू नहीं हुआ था, जिस कारण से बहुत सारी जगह पर स्त्रियों के साथ आर्थिक अत्याचार होता था यानी कि एक समान कार्य करने के बावजूद भी पुरुषों की तुलना में कम वेतन मिलना

ऑफिस में समान वेतन का अधिकार केवल स्त्रियों के संवैधानिक अधिकारों का ही संरक्षण नहीं करता है, इसके अलावा भी यह उन कर्मचारियों के संवैधानिक अधिकारों का भी रक्षक हैं जो कि संविदा आधारित सरकारी नौकरी करते हैं

बहुत समय तक इन संविदा आधारित सरकारी कर्मचारियों के साथ भी समान वेतन के अधिकार का हनन हुआ करता था और उन कर्मचारियों की तुलना में इनका वेतन बहुत ज्यादा कम था जो कि परमानेंट सरकारी नौकरी करते है

जबकि इन दोनों प्रकार के कर्मचारियों द्वारा एक ही प्रकार के कार्यों को किया जाता था उदाहरण के तौर पर एक परमानेंट सरकारी कर्मचारी द्वारा एमएस ऑफिस पर एक फाइल बनाई जाती हैं तो उसके हजार रुपए दिए जाते है

वहीं दूसरी और यदि एक संविदा सरकारी कर्मचारी द्वारा एमएस ऑफिस पर एक फाइल बनाई जाती हैं तो उसे केवल ₹500 ही दिए जाते हैं

जब किन्हीं दो व्यक्तियों के बीच में वेतन का निर्धारण किया जाता है तो उनकी योग्यता एवं उनकी कार्यकुशलता को देखा जाता है पर जब यह दोनों समान होने के बावजूद भी उन दोनों के वेतन में अंतर कर दिया जाता है तो यही वेतन के अधिकार का हनन माना जाता है

आमतौर पर यही वेतन के अधिकार का हनन स्त्रियों के साथ होता आया है और हो सकता है आज भी हो रहा हो चाहे कितने ही कानून या अधिनियम क्यों ना बना लिए जाए

हमारे समाज में महिलाओं को शारीरिक और कार्यकुशलता के आधार पर पुरुषों की तुलना में कमजोर ही माना जाता है

और ऐसा माना जाता है कि उन कार्यों को महिलाएं अच्छी प्रकार से नहीं कर सकती जो कि पुरुषों द्वारा किए जाते हैं क्योंकि हमारे समाज में यह धारणा रही है कि पुरुष ही बलशाली हैं और यही पुरुष प्रधान समाज का सूचक भी माना जाता है

 

समान वेतन के अधिकार की संवैधानिक स्थिति

हालांकि देखा जाए तो समान वेतन का अधिकार किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार तो नहीं है परंतु संवैधानिक अधिकार जरूर हैं

और भारत का संविधान या कहता है कि प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक कार्य के लिए एक समान ही वेतन उपलब्ध कराया जाना चाहिए

साथ ही जब एक समान वेतन उपलब्ध कराया जा रहा हो तो किसी भी आधार पर उनके साथ भेदभाव नहीं किया जाए जैसे की जाति, धर्म, लिंग इत्यादि

हमारे संविधान में यह बात शुरुआत से ही लिखी गई है कि पुरुषों तथा स्त्रियों के बीच किसी भी आधार पर कोई भी भेदभाव हमारे समाज में ना किया जाए

जब लिंग के आधार पर वेतन के अधिकार की बात की जाती है तो यहां पुरुषों एवं स्त्रियों को एक समान वेतन उपलब्ध करवाने की जिम्मेदारी संविधान द्वारा सरकार को दी गई है

भारत के संविधान 39D मे समान वेतन के अधिकार को राज्य का एक नीति निदेशक तत्व माना गया है

और संविधान द्वारा यह कहा गया है कीजब भी राज्य द्वारा कोई भी कानून का निर्माण किया जाए तो उसमें पुरुषों तथा महिलाओं की भागीदारी एक समान ही निश्चित की जाए और साथ ही लिंग के आधार पर उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव ना किया

इसके अलावा भारतीय संविधान का अनुच्छेद 141 भी यह कहता है कि लिंग के आधार पर वेतन में भेदभाव करना अनुचित हैं और सरकारों तथा सुप्रीम कोर्ट का या दायित्व बनता है कि वह इसे तुरंत प्रभाव से समाप्त करें

 

समान वेतन का अधिकार अधिनियम

1975 के बाद सरकार यह जान चुकी थी कि यदि भारत में समान वेतन के अधिकार को पूर्णता लागू करना है तो इसके लिए एक अधिनियम बनाना जरूरी है और इसी को ध्यान में रखते हुए 8 मार्च 1976 को समान वेतन का अधिकार नामक एक अधिनियम लागू किया गया

इस समान वेतन का अधिकार अधिनियम ने महिलाओं की कार्यकुशलता को एक सम्मान भी प्रदान किया और उन्हें समान वेतन भोगी कर्मचारी बनाने में भी योगदान किया

इस अधिनियम के तहत यह प्रावधान किया गया कि यदि कोई संस्था या प्राइवेट कंपनी इस अधिनियम के नियमों का उल्लंघन करती है तो उसे 10,000 से लेकर 20000 तक जुर्माना भी देना पड़ सकता है और यह जुर्माना 18000 से लेकर 28000 तक भी हो सकता है

इसके अलावा इस जुर्माने के साथ ही उस कंपनी मालिक को 3 साल तक की कैद भी हो सकती हैं और इसी प्रकार की गलतियों का बार-बार दोहराव करने पर उस कंपनी या संस्था का लाइसेंस या उसकी वैधता को भी रद्द किया जा सकता है

1976 में लागू किए गए इस समान वेतन के अधिकार में महिलाओं की सुरक्षा का भी ध्यान रखा गया है और उन संस्थाओं को बहुत सारी हिदायतें भी दी गई हैं, जहां पर बहुत बड़ी संख्या में महिला कर्मचारी कार्य करती हैं

 

ऑफिस में समान वेतन का अधिकार है महिलाओं के लिए वरदान

यह अधिकार महिलाओं को आर्थिक रूप से सशक्त बनाता है और समाज में उन्हें आगे बढ़ने के अवसर भी प्रदान कराता है क्योंकि जब उन्हें समान कार्य के लिए पुरुषों के बराबर वेतन मिलेगा तो उनके परिवारों द्वारा भी उन्हें आगे बढ़ने के मौके प्रदान कराए जाएंगे

समान वेतन अधिनियम के तहत महिलाओं को बहुत सारे अधिकार भी दिए गए हैं और उनकी सुरक्षा को भी ध्यान में रखा गया है जो कि निम्नलिखित हैं :

  • किसी भी संस्थान में महिलाएं शाम के 7:00 बजे के बाद कोई कार्य नहीं करेगी
  • महिलाओं को मिलने वाले प्रमोशन उतने ही होंगे जितने की एक पुरुष कर्मचारी को मिलते हैं और वह पद भी पुरुषों की तुलना में पहले महिलाओं को प्रदान कराया जाएगा
  • पुरुष कर्मचारियों को मिलने वाले विभिन्न प्रकार के बोनस और भत्ते भी महिला कर्मचारियों को उसी मात्रा में मिलेंगे
  • उस संस्था में फीडिंग हाउस की स्थापना की जाए यदि उस महिला कर्मचारी के साथ कोई छोटा बच्चा है, तो जहां पर वह महिला कर्मचारी अपने बच्चे को स्तनपान करा सके
  • अत्यधिक जोखिम पूर्ण कार्यों को महिला कर्मचारी नहीं संचालित करेगी और यदि इन कार्यों को संचालित किया जाता है तो उस संस्था की पूर्ण जिम्मेदारी के साथ ही ऐसे कार्यों को महिला कर्मचारी द्वारा संचालित किया जाएगा
  • अगर शाम के 7:00 बजे बाद महिला किसी संस्था मे काम करती है तो उसकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उस संस्था की होगी
  • हॉलीडे वाले दिन महिलाओं को अनावश्यक रूप से ऑफिस में नहीं बुलाया जाएगा और ऐसा करने पर उस कंपनी के खिलाफ सख्त एक्शन भी लिया जा सकता है

इस प्रकार से Office me Saman vetan ka Adhikar ना केवल महिलाओं को मिलने वाले समान वेतन को सुनिश्चित करता है बल्कि इसके साथ ही उनकी सुरक्षा को भी लागू करता है

 

समान वेतन का अधिकार तथा सुप्रीम कोर्ट

8 मार्च 1976 को समान वेतन का अधिकार अधिनियम के लागू होने के बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2019 में एक निर्णय देते हुए यह कहा गया कि क्या वास्तविकता में यह अधिनियम कारगर हैं या नहीं

इस अधिनियम की प्रासंगिकता को सुनिश्चित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा यह आदेश दिया गया कि किसी भी सरकारी संस्था में काम करने वाले किसी भी पुरुष या महिला कर्मचारी का न्यूनतम वेतन ₹18000 प्रतिमाह होना चाहिए

सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए इस फैसले का आधार यह था कि 1976 में जब यह समान वेतन का अधिकार लागू किया गया तो उस समय की आर्थिक परिस्थितियां अलग थी और आज के समय में बढ़ते खर्चों ने स्त्रियों पर भी आर्थिक बोझ को बढ़ा दिया है

इसके अलावा 2022 के शुरुआत में भी सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस समान वेतन के अधिकार को लेकर अपना एक उचित पक्ष रखा गया था कि समान वेतन का अधिकार एक मौलिक अधिकार नहीं है परंतु भारत का संविधान यह सुनिश्चित करता है कि सभी पुरुषों तथा महिलाओं को एक समान वेतन प्रदान कराया जाए

साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर्स के लिए भी एक समान वेतन को लागू करने की सिफारिश की

 

ऑफिस में समान वेतन के अधिकार की प्रासंगिकता

अगर वर्तमान समय में देखा जाए तो आज भी यह अधिकार पूर्णता महिलाओं को नहीं मिल पाया है और छोटे-छोटे क्षेत्रों में जो कि संगठित कार्य नहीं करते उनमें आज भी महिलाओं को पुरुषों की तुलना में कम वेतन प्रदान कराया जाता है

उदाहरण के लिए एक मजदूरी करने वाली महिला को एक मजदूरी करने वाले पुरुष की तुलना में रोजाना मिलने वाला वेतन कम ही मिलेगा क्योंकि ऐसा माना जाता है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में कम कार्य करती हैं

सभी सरकारी संस्थाओं में तो यह अधिकार पूर्णता लागू किया जा चुका है और इस अधिनियम को लागू करना भी सरकार की नैतिक जिम्मेदारी बनती हैं क्योंकि ऐसा ना करना सीधे तौर पर लैंगिक आधार पर असमानता उत्पन्न करना होता है

पर जब तक यह अधिकार निजी संस्थाओं में नहीं लागू हो जाता तब तक इस अधिकार को पूर्णता सफल नहीं कहा जा सकता है

क्योंकि भारत में रहने वाली अधिकतर महिलाएं  इन्हीं निजी संस्थाओं तथा प्राइवेट कंपनियों में कार्य करती हैं, जहां पर उनके साथ विभिन्न प्रकार के शोषण भी होते हैं

 


FAQs : समान काम समान वेतन

सवाल : ऑफिस में समान कार्य समान वेतन क्या है?

समान वेतन का अधिकार केवल ऑफिस तक ही सीमित नहीं है यहां तक कि किसी भी क्षेत्र में एक ही कार्य के लिए पुरुष तथा स्त्री को एक ही समान वेतन उपलब्ध कराना ही समान वेतन का अधिकार है जो कि संवैधानिक रूप से भी मान्यता प्राप्त सिद्धांत माना जाता है

सवाल : समान वेतन का अधिकार किस प्रकार से महिलाओं के लिए एक वरदान बना?

साल 1976 में जब समान वेतन के अधिकार को लागू किया गया और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 141 में इसे निर्देशित किया गया तो इसके तहत उसी साल से हर क्षेत्र में पुरुषों और स्त्रियों का वेतन एक समान कर दिया गया और इसी कारण से यह समान वेतन का अधिकार महिलाओं के लिए एक वरदान बना

सवाल : क्या वर्तमान में समान वेतन का अधिकार पूर्णता लागू है?

हालांकि समान वेतन के अधिकार का एक अधिनियम जो कि 8 मार्च 1976 में पास हुआ था, इसके बावजूद भी हर क्षेत्र में स्त्रियों तथा पुरुषों का वेतन समान नहीं किया जा सका है

सवाल : क्या समान वेतन का अधिकार किसी अन्य वर्ग के लिए भी लागू होता है?

हां, जो व्यक्ति संविदा आधारित सरकारी नौकरी करते हैं उन्हें उन व्यक्तियों की तुलना में कम वेतन प्रदान किया जाता है जो कि परमानेंट सरकारी नौकरी करते हैं जबकि दोनों प्रकार के कर्मचारियों द्वारा एक समान ही कार्य किया जाता है

सवाल : समान कार्य के लिए समान वेतन नामक अधिनियम कब पास हुआ था?

समान कार्य के लिए समान वेतन अधिनियम 8 मार्च 1976 में पास किया गया था, जिसका उद्देश्य था कि स्त्रियों के साथ हो रहे भेदभाव को कम करना जो कि वेतन के आधार पर हो रहा था

सवाल : भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद समान वेतन के अधिकार से संबंधित हैं?

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 141 समान वेतन के अधिकार से संबंधित हैं

सवाल : अगर किसी व्यक्ति द्वारा समान वेतन के अधिकार का उल्लंघन किया जाता है तो उस पर कितने रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है?

अगर किसी सरकारी संस्था या कंपनी द्वारा समान वेतन के अधिकार का उल्लंघन किया जाता है तो उस पर 18000 से लेकर ₹28000 तक का जुर्माना लगाया जा सकता है

सवाल : अगर किसी व्यक्ति द्वारा समान वेतन के अधिकार का उल्लंघन किया जाता है तो उसे कितने वर्ष की जेल हो सकती हैं?

ऐसा करने पर उसे लगभग 3 साल तक की जेल हो सकती हैं और एक बार और इसी प्रकार की गलती दोहराने पर उस सरकारी संस्था या कंपनी का लाइसेंस भी रद्द किया जा सकता है

सवाल : हाल ही में सुप्रीम कोर्ट का समान वेतन के अधिकार से संबंधित निर्णय कब आया था?

2019 में ही माननीय सुप्रीम कोर्ट का निर्णय समान वेतन के अधिकार के संबंध में आया था

सवाल : समान वेतन के अधिकार के तहत हाल ही में कौन से वित्त आयोग ने अपना निर्णय सुनाया?

सातवें वेतन आयोग ने इस समान वेतन के अधिकार से संबंधित अपना निर्णय सभी के सामने रखा और यह बताया कि किसी भी कर्मचारी का न्यूनतम वेतन क्या होना चाहिए


Conclusion

तो पाठको हम आशा करते हैं कि आपको आज का हमारा यह लेख ऑफिस में समान वेतन का अधिकार बहुत ज्यादा पसंद आया होगा और इसे पढ़कर आप स Saman Vetan ka Adhikar क्या होता हैं, इससे संबंधित विभिन्न प्रकार की जानकारी को समझ चुके होंगे

किस प्रकार से किसी स्त्री और पुरुष को एक समान कार्य के लिए एक समान वेतन दिया जाना चाहिए, इस औचित्य पूर्ण बात को भी आप अच्छी प्रकार से समझ गए होंगे

अगर आपको आज का हमारा यह लेख पसंद आया हो तो इस लेख के Comment Box में अपने अमूल्य Suggestions जरूर लिखें ताकि आगे आने वाले समय में हम आपके लिए इसी प्रकार के ज्ञानवर्धक लेख लाते रहे और आपके ज्ञान में सकारात्मक वृद्धि करते रहे

इस लेख को पढ़ने के लिए आप सभी पाठकों का बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार

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